Lailahailallah
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Noorul Imaan

इन्तेसाब

लाख लाख शुक्र व अहसान उस रब्बुल–आलमीन का जिसने जामए इन्सानी अता फरमा कर अपने मेहबूबे पाक मोहम्मदुर–रसूल अल्लाह स।अ।व। का उम्मती बनाया। करोड़ों दरूद व सलाम आक़ाए नामदार मदनी ताजदार अहमदे मुजतबा मोहम्मद मुस्तफा स.अ.व. व सद दर सद शुक्र व अहसान शहेनशाहे विलायत पेशवाए तरीक़त सय्यदना अब्दुल क़ादिर जीलानी मेहबूबे रब्बानी व ख्.वाजा ग़रीब नवाज़ हिंदलवली अताए रसूल व तमाम मशायख़ीन रिज़्वान अल्लाह तआला अजमईन का जिनकी रूहानी इम्दाद हर दम क़दम पर शामिले हाल है।

ख़ाकसार ना  तो आलिम है ना मुअल्लिम, हक़ीर मन फक़ीर खुद बारगाहे अहले तरीक़त का अदना सा तालिबे इल्म है। यह मेरे पीरे कामिल सुल्तानुल–तरीक़त गंजुल–हक़ीक़त बुर्हानुल–मअरिफत हज़रत ख्.वाजा शेख़ मोहम्मद अब्दुल रऊफ शाह क़ादरी अल–चिश्ती इफ्तेख़ारी पीर फहमी मदज़ल्लहू आली दामते बर्कातहुम की बंदा पर्वरी व ज़र्रा नवाज़ी है जिन्होंने मुझ जैसे नाकिसुल–अक्.ल को अपने दामने आग़ोश में पनाह अता करके अपने उलूमे बातिनी व फुयूज़े रब्बानी व असरारे मेख्फी की लाज़वाल दौलत से माला माल किया, जिसका सम्रा किताबे हाज़ा    “ नूरूल–ईमान ” जो क़ारईन के पेशे नज़र है।

गर कबूल इफ्तेदज़ है इज़्ज़ो शर्फ 

ख़ाकपाए पीर फहमी ख्.वाजा शेख़ मोहम्मद फारूक़ शाह क़ादरी अल–चिश्ती इफ्तेख़ारी मारूफ पीर

यूं तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफगान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ तो “सही” मुसल्मान भी हो

(अल्लामा इक्.बाल)
    
आज दुनिया का अकसर कलमागो खुद को मुसल्मान होने का दम भर रहा है।हत्ता के इस ज़ामे बातिला के सबूत की खातिर खूं गीरी पर आमदा हो चुका है।इस लिबासे मुसल्मानी के जुब्बे व कुब्बे में ऐसे ला तादाद ईमान खोर शयातीन व मुनाफिकीन व मुश्रिकीन पोशिदा हैं। जिन्हें खुली आँख से देखकर भी मोमिन व मुनाफिक का पता नहीं चलता।मसलन किसी बर्तन में रखे हुए पानी को देख कर कोई बता सकता है के यह पानी मीठा है या खारा? हरगिज़ नहीं बता सकता जब तक उस पानी को चख ना ले।ठीक इसी तरह से लफ्ज़े मुसल्मान में इफ्राक व इम्तीयाज़ मौजूद हैं।इस में मोमिन व मुनाफिक पोशिदा व मख्फी हैं। हज़रत ख्वाजा बन्दा नवाज़ गेसूदराज़ अलैह रहमा फरमाते हैं।
            

पानी की पहचान चखने से होगी और मोमिन की पहचान तहकीके कलमा से होगी।हालाँके कुर्आन मजीद ने फुर्क़ाने हमीद की रौश्नी में उन मुनाफिकीन के उस खयाले बातिला की नफी की बल्के उन्हें क़ल्बी तौर पर मरीज़ होने की सनद भी दी।      


मुँह से कहें शक्कर तो जुबां को नहीं मज़ा
जिसने चखा जुबां पर लिज़्ज़त वही लिया

तर्जुमा : और कुछ लोग कहते हैं के हम अल्लाह और पिछले दीन पर ईमान लाए और वह ईमान वाले नहीं, फरेब देना चाहते हैं अल्लाह और ईमान वालों को और हकीकत में फरेब नहीं देते मगर अपनी जानों को उन्हें इस का शऊर नहीं।उनके दिलों में बीमारी है। 
 (सूरह बक्.रा – आयत 8–9)
अब सवाल यह है के हम मोमिन व मुनाफिक किस को कहें तो फिक़ए इस्लाम ने इस मसले को दो खुसूस्यात में दर्ज फरमाया।


अव्वल इक्.रार बिल्लिसान – दुव्वम तस्दीक़ बिलक़ल्ब … जैसा के इमामे आज़म अबू हनीफा र.अ. का क़ौल है– “ ईमान दिल की तस्दीक और ज़ुबान के इक्.रार का नाम है” और आज़ा के आमाल नफ्से ईमान से खारिज हैं।हां वह ईमान में कमाल बढ़ाते हैं और हुस्न पैदा करते हैं।जो भी कलमाए तय्यब के इन दो मुत्तालबात को अच्छी तरह पूरा करता है हम उनको बिलाशुबा अज़रुए इस्लाम मोमिन व मुस्लिम कह सकते हैं।हालाँके मोमिन व मुस्लिम में भी ज़मीन व आसमान का फर्क मौजूद है।जैसा के सूरह अहज़ाब आयत 35 में मुसलमान मर्द और मुसलमान औरत, मोमिन मर्द और मोमिन औरत का अलग अलग ज़िक्र करके दोनों में फर्क़ वाज़ेह किया गया के ईमान का दर्जा इस्लाम से बढ़कर है जैसाके कुर्आन व हदीस के दीगर दलाएल भी इस पर दलालत करते हैं।बहर हाल, मेरी तहरीक का मक्.सद “दावते फिक्र.” है।मैं उन लोगों को दावते फिक्र दे कर बेदार करना चाहता हूं जो महज़ ज़ुबानी जमा खर्च को ईमान समझ कर जन्नत व हूरों के ख्वाब में मुब्तला हैं। मैं उन लोगों को दावते फिक्र देता हूं जो अपनी ला शऊरी के बाइस क़ल्बी अम्राज़ में गिरफ्तार हैं।मैं उन लोगों को दावते फिक्र देता हूं जो जकड़ालू मौलवियों के दामे फरेब में नज़र बंद होकर उनके नक्शे पा को ज़रियाए निजात समझकर कोल्हू के बैल के मानिंद चल रहे हैं।खैर आमदम बर सरे मतलब, कलमाए तय्यबा पढ़कर समझने और समझकर पढ़ने के लिए पेश किया गया।जिसने भी एक मर्तबा कलमाए तय्यबा समझ कर पढ़ा उस के लिए

कलमाए तय्यब आने वाहिद में “कलीदे मग़फिरत” बनकर दरवाज़ाए निजात खोल देता है।जैसे हदीसे पाक में हज़रत अबू बकर सिद्दीक र.अ. से मरवी है के मैंने रसूल अल्लाह स.अ.व. से पूछा के।


तर्जुमा : इस दीन में निजात का खास नुक्.ता क्या है? तो आप स।अ।व। ने फरमाया जिसने मेरा लाया हुवा कलमा मेरी दावत पर क़बूल कर लिया जो मैंने अपने चचा पर पेश किया था यही कलमा असल नुक्.तए निजात है।             (मसनद इमामे अहमद)


जुबां से कह भी दिया ‘ला इलाहा’ तो क्या हासिल
दिल व निगाह मुसलमां नहीं तो कुछ भी नहीं

 


हदीसे पाक :
तर्जुमा : “जिसने कलमाए तय्यब को बिगैर तहक़ीक़ हज़ार बार कहा वह काफिर है”। 

बिला तहक़ीक़ तस्दीक़ बिलक़ल्ब मुम्किन नहीं और बिला तस्दीक़ ज़ुबानी इक्.रार सिवाए दरोग़ गोई के कुछ भी नहीं ।हज़रत पीर आदिल बिजापूरी र।अ। फरमाते हैं।


“ तहक़ीक़ कर तस्दीक़ कर कलमागो बन जाएगा ”

मस्लन अगर किसी जगह कोई हादसा दरपेश हो जाए तो पुलिस वाले आकर पहले मुआमले की तहक़ीक़ करते हैं फिर हादसे की तस्दीक करते हैं फिर थाने में जाकर उस हादसे की गवाही देते हैं।
तहक़ीके कलमा में बारीक नुक्ता नफी व अस्बात हैं ।जिस में दो  

कुफ्र चार शिर्क चार तौहीद के दर्जे पोशिदा हैं।
हुज़ूर अकरम स.अ.व. हज़रत उमर फारूक र.अ. से फरमाते हैं मोमिन वह नहीं जो मस्जिद में जमा होते हैं और जु.बानी तौर पर
कहते हैं।ऐ उमर र.अ. ऐसे कलमागो हक़ीक़त से बे बहरा और बे खबर हैं।यह मोमिन नहीं हैं बल्के मुनाफिक हैं।क्युँके ज़ुबान से तो कलमा             का इक्.रार करते हैं लेकिन कलमा के असल माना से ना वाक़िफ हैं।उन्हें खाक भी पता नहीं है के कलमा से असल मक्.सूद क्या चीज़ है।यानी             तो कह लेते हैं लेकिन उनको क्या खबर के नेस्त से क्या मुराद है और हस्त से क्या? ऐसा शक्की तौर पर कलमा कहना शिर्क है और शिर्क शक एैन कुफ्र है।ऐसे कलमागो काफिर कहलाते हैं क्युँके उन्हें यह नहीं मालूम के कलमा मे किस की नफी मुराद है और किस का अस्बात?
 (अज़ गंजुल­असरार ख्वाजा ग़रीब नवाज़ र.अ.)

इस लिए कलमाए तय्यबा के रूश्द व हिदायत के वास्ते पीरे कामिल की अशद ज़रूरत होती है।ताके वह अपने इल्म व अमल से तालिब के शक व शुब्हात की नफी करके बातिनी कु.व्वत से कलमा के उरूज व नुज़ूल तै कराके इसको मुजस्समे कलमा बना दे।खयाल रहे तौहीद के बिलमुक़ाबिल शिर्क दस्तक दे रहा है। हर गुनाह क़ाबिले उफू है सिवाए शिर्क के।


(सूरह निसा ­ आयत 116)

तर्जुमा : यकीनन अल्लाह नहीं बक्शेग शिर्क को औरबक्शेग देगा इस के अलावा गुनाह जिसके चाहेगा।

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