Lailahailallah
trp
e-Books ( Hindi )
Peer e Kamil

इन्तेसाब

लाखों एहसान व शुकर उस रब्बे कायनात का करोडो दरूदो - सलाम आकाए नामदार मदनी ताजदारे अहमदे मुजतबा मुहम्मद मुस्तफा स. अ. व. पर व सद - दर - सद अहसान व शुकर महबूबे सुब्हानी शेख अब्दुल कादर जीलानी व ख्वाजाए ख्वाजगॉ ख्वाना मुइनुद्दीन चिश्ती व तमामी अवलिया व मशाखिन रिज्वान अल्लाह तआला अजमइन का । इन्सानी जिंदगी की असल गायत यही है कि वह तरककी करके अपने मुगदा असली यानी हक से वासिल हो जाए । हर वक्त अपने ख्याल को मकसूदें आला की तरफ मुतवज्जा रखें । इंसान के लिए इससे बढ़कर कोई नेएमत नहीं । रूहानी तरक्की के वसायल खुद इंसान के अंदर मौजुद हैं ।
      

 इंसान खुदा का मजहरे अतम है । इसलिए वह काबिलियत रखता है कि सिफाते बशरी को फना करके खुदा मे मिल जाए और खुदा के सिफात हासिल करके बका के मरतबा को पहुँचे । रसूल व पैगम्बर अ.स. खुदा के मजहरे खास होते है । हुसूले मारफत के लिए इंसान को मुख्तलिफ जराए से गुजरना पड़ता हैं । अंबिया अलै - सलाम इसी मकसद की तबलीग और उन्ही जराए की तालीम के लिए माबूस हुए । औलिया अल्लाह उन्ही की नियाबत फरमाया करते हैं, उसी नियाबत और खिलाफत में रमूजे बातनी व फयूजे - रब्बानी पोशीदा हैं । मेरे आका व मौला पीर रोशन जमीर हजरत ख्वाजा शेख मोहम्मद अब्दुल रऊफ शाह कादरी अल-चिश्ती इफतेखारी पीर फहमी मद जल्लहू आली ने उन्ही रमूज से आगाही बखश कर खिलाफते कादरिया आलिया खुलफाइया व खिलाफते चिश्तिया बहिश्तिया से सरफराज फरमा कर मसनदे रूशद - व - हिदायत पर फायज किया । उसी रूशद - व - हिदायत के जमन में किताबे हाजा पीरे - कामिल है । जो मैं अपने पीर व मुर्शिद की बारगाहे विलायत में नजर करता हूँ ।

गर कुबूल इफतदज है इज्जो शरफ
खाकपाए पीर फहमी ख्वाजा शेख मोहम्मद फारूक शाह कादरी 
अलचिश्ती इफ्तेखारी मारूफ पीर अफी अनहो ।

बैत बय्य से मुशतक हैं । बय्य के असल मानी मोल लेने या बेचने के हैं और मुबायत के मानों में भी मुसतमिल हैं । ये कलमा अपने वसी मफहूम के लिहाज से कई माना देता हैै । बैत या मुबायत के लगवी (लफ्जी) माना अहद व पैमा के निकलते  हैं । जबकि इस लफ्ज से मजबूती से बाँधना, खरीद व फरोख्त, लेन-देन, मुहकम पैमान, अताअत, मुरीद होना और शागिर्द होना मुराद लिया जाता है। बैत के मुतारूफ अल्फाज, मुआहदह, वादा, पक्का अहद और मिसाक हैं । बकौल अल्लामा इब्ने मन्जूर साहब लिस्सानुल अरब शाराअल खामोस ः गोया बैत करनेवाला सब कुछ मुर्शिद के हवाले करके उन से फैज मोल लेता हैं । 

कुरान करीम में बैत या मुबायतह, अहद, वादा और मिसाक के सारे अल्फाज कसरत से मिलते हैं । कमोबेश एक ही मतलब अदा करनेवाले ये अल्फान मुख्तलिफ जगहो पर अलग-अलग मौजुआत के तहत इस्तेमाल हुए हैं ।

हक तआला ने नबी आदम (अ.स.) की पुश्तों से उनकी नसलों को निकाला था,और पूँछा था, क्या मैं तुम्हारा रब नहीं? क्यों नहीं, सब ने कहा, हम गवाही देते है तूही हमारा रब हैं । 

(सूरह अएराफ, आयत 172 और ये वाकिया तखलीके आदम अ.स. के वक्त पेश आया था । अल्लाह तआला ने पूरी नस्ल आदम को बैक वक्त वजूद व शऊर अता करके उनसे अपनी रबुबियत की शहादत ली थी गोया ये मखलूक की अपने खालिक से वफादारी का पहला इकरार व पैमा था, इसी को मिसाके अजल से ताबीर किया जाता है।

तमाम अंबिया अ.स. से भी अहद लिया गया कि अपने बाद आनेवाले नबी आखिरूजमा सललल्लाहू अलैह व वसल्लम की तसदीक और मआवनत की जाए ।  (सूरह अल इमरान, आयत 81)
    

कोहे तूर के दामन में बनी इसरायल के नुमाइंदो से अहद लिया गया था कि दरवाजे में सजदारेज होते हुए दाखिल हो, हमने उनसे कहा की सबूत का कानून न तोडो और इस पर उन से पुख्ता अहद लिया (सूरह निसा आयत 154) ये अहद मिसाके तूर से मारूफ हैं ।कुरान हकीम ने बनी इसराइल से लिए गए अहदों का मुत्तद मुकाम पर जिकर फरमाया है । सूरह मायदा में इसाइयो से लिए गए अहद के मुताल्लिक फरमाया गया इसी तरह हमने उन लोगो से भी पुख्ता अहद 

लिया था जिन्होने कहा था हम नसारा हैं ।    (सूरह मायदा, आयत - 14)
कुरान हकीम ने ईमान को अब्द व रब के दरमयान कायम होनेवाले अहद का नाम दिया है ।  (सूरह तौबा आयत - 111)
कुरान हकीम में सैकड़ो बार अल्लाह तआला के वादा के हक्कानियत और सदाकत का जिकर मिलता है । हुजूर अकरम स. अ. व. सल्लम के दस्ते मुबारक पर बैत करनेवालों के हाथो 

पर अल्लाह तआला का हाथ होने का सरीह ऐलान सूरह फतेह में मौजूद हैं । (आयत - 10)
इस बैत से मुराद बैते रिज्वान है जो हुदैबिया में हुजूर अकरम स.वंसल्लम ने तमाम मुहाजिरीन व अन्सार से ली थी ये बैते जिहाद थी । इस इरशादे कुरानी से अजमते रसूल स. अ. 

व. का एक नुरानी पहलू उजागर होता हैं कि हुजूर स. अ.व. को कुर्बे इलाही में वह मुकाम हासिल है कि हुजूर स. अ.व. से बैत, रब्बुलआल्मीन से बेत है और हुजूर स. अ.व. का बस्ते अकदस गोया दस्ते खुदावंदी है 

। हुदैबिया में बैत करनेवालो को रजाए इलाही का तमगा हासिल हुआ, ये बैत एक कीकर (बबूल) के दरख्त के नीचे ली गई थी । (सूरह फतेह, आयत - 18) 
इससे पता चलता है कि इमान व इस्लाम के अलावह दीगर उमूर पर भी बैत होती है । मसलन हुदैबिया में ली गई बैत, बैते इस्लाम न थी बल्कि बैते जिहाद थी लिहाजा आमाल, 

तकवा, तौबा, वगैरह पर भी बैत हो सकती हैं ।

अंबिया अलैसलाम का अपनी कौमो को हक और भलाई के लिए बुलाना । दावते ईमान और उम्मतो का उनकी दावतो पर लब्बैक कहकर उसको कुबूल कर लेना ही इस्तलाहन ईमान लाना है । तौहीद व रिसालत का यकीन और उसका इजहार शऊरी सुपुर्दगी की अलामत, और फरायज व अहकाम की पाबंदी का अहद बजाए खुद अताअत व फरमा बरदारी का निशान बन जाता हैं जिसे अरफन बैत या मुबायत का नाम दिया जा सकता है।

फारान की चोटी से जब हादी बरहक ने पहली बार सदाए तौहीद बुलंद की थी तो मर्दो में से पहले हजरत अबूबकर सिद्दीक र. अ. ने, औरतो में से सबसे पहले हजरत उम्मुल मोमीनीन 

हजरत बीबी खदीजा  र.अ. और बच्चों में सबसे पहले हजरत अली मुर्तजा र.अ. ने ईमान लाकर अपने बैते इस्लाम का इजहार किया था ।
बैत के अकसाम के बारे में उल्मा मुख्तलिफ नुकात नजर के हामिल हैं ताहम बैते ईमान, बैते इस्लाम, बैते उक्बा, बैते जिहाद, बैते रिज्वान, बैते तकवा, बैते तौबा, बैते आमाल, बैते 

तरबियत, बैते इलम, बैते इरादत, बैते तरीक, बैते खिलाफत, बैते वली अहदी, बैते अताअत और बैते इमामत और बैते अमानत मशहूर हैं ।
बैत पैमाने अताअत है । बैते कामिल सुपुर्दगी और तसलीम व रजा का इजहार है । ये जब पैमाने अताअत का मुआहिदा है तो इसको मजबूत बनाने के लिए बैत करनेवाला अपना हाथ 

बैत लेनेवाले के हाथ में दे देता है । बैत का फेल लेन देन के फेल से मुशाबा होता है यानी बैत करनेवाले अपने अख्तियारात उसके हाथ बेच दिए जिससे बैत करली है । इसलिए बैत को बैत कहा जाता है ।    

(मुकदमा इब्ने खुल्दुन) 
बैते रिज्वान के मौके पर हुजूर स.अ.व. ने अपना बाँया हाथ उठाकर फरमाया कि या अल्लाह ये उसमान र. अ. का हाथ है और दायां हाथ उठाकर ये मुहम्मद रसूल अल्लाह का हाथ हैं 

आपने अपने दाए हाथ पर बाँया हाथ रखकर हजरत उसमान र. अ. की बैत की तकमील फरमाई। इससे साबित होता है कि बवक्ते बैत हाथ में हाथ दिया और लिया जाता है । इसी वजह से हक तआला ने हुदैबिया में बैत करने वाले 

सहाबा के मुतालिक इरशाद फरमाता है कि ऐ महबूब जो तुम्हारी बैत करते हैं वह अल्लाह ही से बैत करते हैं । उनके हाथों पर अल्लाह का हाथ हैं । (सूरह फतेह, आयात - 10)
लिहाजा मुसाफा बैत की रसम के लिए सुन्नते रसूल स.अ.व. ही नहीं बल्कि खुशनूदी खुदा का बाइश भी हैं । (फतवायेरिजविया)

हजरत शाह अब्दुल अजीज देहलवी र.अ. बैत के बारे में इरशाद फरमाते हैं कि मुरीद अपना अकीदत का हाथ मुर्शिद के हाथ के साथ मुनाकिद करता है । और ये इनेकाद मुर्शिद के दस्ते से इस के मुर्शिद के साथ होता है और आला हाजलकयास यक के बाद दिगरे ये इनेकाद हजरत अली करमल्लाहू वजहूल्करीम के साथ हो जाता है और बावास्ता हजरत अली र.अ. के इस बैत का इनेकाद हजरत नबी करीम स.अ.व. के साथ हो जाता हैं । (फतावा अजीजियानं. पेज83)

trp